Thursday, June 18, 2009
मेरे बारे मैं
मैं वर्ष १९९९ से अखबार जगत से जुड़ा हुआ हूँ। सावरकर बाल विहार मैं मेरी रुई की दुकान है कर्ण रुई उद्योग केंद्र के नाम से। कई वर्षों से मैं शौकिया तौर पर शेर शायरी एवं लेख आदि लिखता रहा हूँ।
कुत्ते खीर खा रहें हैं
आजकल की दुनिया में अपनी मेहनत का पूरा फल किसी को नहीं मिल पा रहा है
क्योंकि आजकल कुत्ते खीर खा रहे हैं
बदमाशों की ज्यादा पहुँच होती है आम आदमी की नहीं
क्योंकि आजकल पुलिसवाले माल खा रहे हैं
गरीब आदमी की सुनवाई नहीं होती, पैसे वालों की होती है
क्योंकि आजकल देश के पहरेदार ही रिश्वत खा रहे रहें हैं
मीडिया की भूमिका भी संदेह के घेरे मैं हैं
क्योंकि मीडिया विज्ञापनदाताओं के हाथों की कठपुतली बनकर
सामाजिक सरोकार से पल्ला झाड़ रही है
क्योंकि आजकल कुत्ते खीर खा रहे हैं
बदमाशों की ज्यादा पहुँच होती है आम आदमी की नहीं
क्योंकि आजकल पुलिसवाले माल खा रहे हैं
गरीब आदमी की सुनवाई नहीं होती, पैसे वालों की होती है
क्योंकि आजकल देश के पहरेदार ही रिश्वत खा रहे रहें हैं
मीडिया की भूमिका भी संदेह के घेरे मैं हैं
क्योंकि मीडिया विज्ञापनदाताओं के हाथों की कठपुतली बनकर
सामाजिक सरोकार से पल्ला झाड़ रही है
Tuesday, June 16, 2009
ऐ मालिक तेरे वंदे हम
ऐ मालिक तेरे वन्दे हम, ऐसे हों हमारे करम
नेकी पर चलें और बदी से डरें ताकि हंसते हुए निकले दम
ये अँधेरा घना छा रहा, तेरा इंसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर, कुछ ना आता नजर, सुख का सूरज छुपा जा रहा
है तेरी रोशनी में जो दम, तो अमावस को कर दे पूनम
बड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों हैं इसमें कमी
पर तू जो खड़ा, है दयालु बड़ा, तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तुने हमें जब जनम, तू ही झेलेगा हम सबके गम
बाद
जब जुल्मों का हो सामना, तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करे, हम भलाई भरे, नहीं बदले की हो भावना
उठे प्यार का हर कदम, मिटे बैर का ये भरम
नेकी पर चलें और बदी से डरें ताकि हंसते हुए निकले दम
ये अँधेरा घना छा रहा, तेरा इंसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर, कुछ ना आता नजर, सुख का सूरज छुपा जा रहा
है तेरी रोशनी में जो दम, तो अमावस को कर दे पूनम
बड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों हैं इसमें कमी
पर तू जो खड़ा, है दयालु बड़ा, तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तुने हमें जब जनम, तू ही झेलेगा हम सबके गम
बाद
जब जुल्मों का हो सामना, तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करे, हम भलाई भरे, नहीं बदले की हो भावना
उठे प्यार का हर कदम, मिटे बैर का ये भरम
Saturday, June 13, 2009
आल्हा उदल
मुझे आल्हा उदल खंड बहुत ही अच्छा लगता है मैं उसे पड़ना चाहता हूँ परन्तु हिन्दी मैं इन्टरनेट पर कोई कविता नहीं मिल रही है। अगर आपको ऐसी वेबसाइट पता हो तो कृपया मुझे बताएं।
Subscribe to:
Posts (Atom)